Makka Ki Kheti: हेलो दोस्तों, आज के इस आर्टिकल में हम बरसात में मक्का खेती करने की नई तकनीक के बारे में बताने जा रहे हैं बहुत सारे लोगों को यह तकनीक पता नहीं होगी अगर आपको यह तकनीक पता नहीं होगी तो आप इस आर्टिकल को जरूर पढ़ ले ताकि आपको कुछ बातें समझ में आए और आपका डाउट क्लियर हो जाएगा आखिर बरसात में Makka खेती कैसे करते हैं कौन सी नई तकनीक है जिसके सहारे यह खेती की जाती है तो आपको इस आर्टिकल के माध्यम से हम सब कुछ जानकारी हम देने वाले हैं तो चलिए शुरुआत करते हैं।
खेती की तैयारी:[Makka Ki Kheti]
Makka Ki Kheti तैयारी बारीश के पहले पाणी में जून महिने में शुरु हो जाती है। और वैज्ञानिक दृष्टिकोन से Makka की खेती जून से अगस्त तक दुसरे सप्ताह तक शुरु करनी चाहिए। Makka खेती शुरु करने से पहले आपको भूमी संयोजन करना सबसे जरुरी है। गर्मीयो के सीजन में अक्सर हम देखते है हर जगह खेत खाली रहते है तो ऐसे में गर्मीयों में जुताई करना आसान हो जाता है, और यह लाभवर्तक भी होता है।जुताई से हमें कीट, बुरशी, खरपतवर, जैसे बीमारियोंसे रुकावट मे मदत मिलती है।
बुवाई का तरीका:
जैसे बारिश की शुरुवात होती है वैसे तुरंत आपको पहले बारीश में Makka की बुवाई की शुरुवात करनी चाहिए और अगर आपके पास पहले से ही सिंचाई करने की सुविधा हो तो इसे 10/15 दिन पहले से ही शुरुवात करनी चाहिए इसे फायदा ये होता है की फसलो की पैदावार वृद्धी होना चालु होती है। जब आप बीज बुवाई की शुरुवात करते है तब 3/5 सेंटीमीटर के निचे गहराई तक करना उचित है और बीज की बुवाई मेंड के किनारे ही उपरी साईट से करें। और बुवाई के एक महिने बाद मिट्टी चढाना चालु करे। पौधों की संख्या कमसे कम 60/85 हजार हेक्टर रखनी चाहिए।
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रोग उपचार:
[Makka Ki Kheti] अपने अक्सर देखा होगा की खेतो में अनेक प्रकार से रोगमिश्रीत पत्तियों पाई जाती है जैसे के पत्तो पर व्हाईट रुई जैसे गोलाकार आकार में रोगनाशक कीटक पाए जाते हैं।ये जो परिणाम होता है इसका धीरे धीरे लाल आकार में बदल कर गहरा होने लगता है। अगर हमें इसकी देखभाल या रोकथाम के लिए आवश्यक उपाययोजना करनी पडती है वरना इसका असर पुरी तरह से खेतो पर पड सकता है इसलिये ऐसा होने से जल्दी ही उपायोजन करना जरुरी है।रोकथाम उपाय करने के लिये बाजार में जिंक मैग्नीज या जीरम 85 प्रतिशत 3 किलोग्राम या 30 लीटर प्रती हेक्टरी में छिडकाव पाणी की मात्रा में मिलाकर करना उचित रहेगा।
पौधा संरक्षण:
Makka की पौधों की रक्षा करना बेहद जरुरी है वरना काफी नुकसान का सामना करना पड सकता है तनबोधक और धब्बेदार कीट तन के बीच वाले यानी मध्यस्तर भागो को भारी नुकसान पोहोचातां है जिसे तन पर गांठ तैयार होती है और इसी कारण दाने नहीं आते।
अगर ऐसे किटो से आपको बचाव करना है तो मैं आपको कुछ टिप्स दुंगा आप उसे फॉलो करो
1. फसल कटाई के बाद गहरी निचली जुताई जरुर करें इससे यह फायदा होगा कि कीटों के अंडे और प्युपा नष्ट हो जाते हैं।
2. Makka की कीट प्रतिरोधी किस्मों से इस्तेमाल करना जरुरी है इससे पौंधो की सुरक्षा बनी रहती है।
3. अगर आप बुवाई करते हो तो मान्सून के बाद दुसरे सप्ताह में ही करें।
4. कभी भी खेतो में एक किटकनाशक का बार बार इस्तेमाल नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे पौंधो की बढने की क्षमता खुंट जाती है।
5. कभी भी एक खेत में हमेशा अलग अलग फसल लगानी चाहिए इससे खेत जमीन की क्षमता बढती हैं और जमीन की अतरीम मशागत होती है।
बीज उपचार:
बीज की बुवाई करने से एक बात का जरुर ध्यान रखें जैसे कीटकनाशक दवा या थायरम एग्रोसेन जी.एन.3.5 ग्राम/किलो ग्राम उपचार पुर्वक बोना चाहिए ज्यादा से ज्यादा एजोस्पाइरिलम या पी.एस.बी. कल्चर 5-10 प्रती किलो बीज का उपचार करें। पौधे अंतरण में जलद पकने वाली कतार से कतार 65 सेंटीमीटर से 35 सेंटीमीटर मध्यम पकने वाली कतार से कतार 75 सें.मी. पौधे से पौधा 30 सेंटीमीटर कतारो और पौंधो के अंतरिक दूरी कतार से कतार 65 सेमी पौधें से पौधां 25 सेमी हरे चारे के लिए कतार से कतार 45 सेमी पौधें से पौधां 25 सेमी।
भुमी की तैयारी:
भुमी की तैयारी करते समय आप सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से एक बार सही से जुताई कर ले क्लटीवार से आडी खडी जुताई करके और जमीन को दोनों दिशाओं जोतें जिससे मिट्टी पुरी तरह से महीन हो जाए। उसके बाद पाटा को चलाकर खेत को समतोलीत बना लेना चाहिए। ऐसा करने से अंकुरण अछा होता है। बुवाई से 20 से 25 दिन पहले गोबर की खाद प्रती हेक्टर के हिसाब से मिलाया जाता है । जब आप अंतरिम जुताई करते हो तब 25/30 किलो ग्राम क्लोरोफायरीपास चुर्ण को डालना बेहद जरुरी है यह बिलकुल ध्यान रखना।
कब करें फसल की कटाई:
जब फसल की अवधी पुरी होती है उसके बाद 60/65 दिन बाद जैसे दाने वाली फसल तैयार होती है उसे कमसे कम 90/120 दिन में काटे अगर दाने में 25/30 प्रतिशत नमी रहेगी तभी फसल की कटाई करनी चाहिए।