How Many Delimitation Commission भारत में कितने परिसीमन आयोग बने हैं?

How Many Delimitation Commission आज के इस पोस्ट में हम परिसीमन आयोग की भारत में क्या भूमिका रही है साथ ही परिसीमन आयोग का सफर परिसीमन आयोग कितनी बार बना किस वक्त परिसीमन आयोग बनाया जाता है उनका महत्त्व नियुक्ती की प्रकिया उसका महत्त्व सब कुछ आज इस लेख में हम कम्प्लीट करने वाले है अगर आपको परिसीमन आयोग के बारे में अछेसे जानना हैं तो इस लेख को अंत तक जरूर पढे.

भारतीय लोकतंत्र निष्पक्ष प्रतिनिधित्व पर आधारित है, और इसे सुनिश्चित करने का एक तरीका Delimitation Commission (Delimitation Commissions) के माध्यम से है। लेकिन अब तक ऐसे कितने आयोग बनाए गए हैं?

परिसीमन आयोगों की भूमिका How Many Delimitation Commission

भारत में कितने परिसीमन आयोग बने हैं? How Many Delimitation Commission

सोचिए कि भारत का चुनावी नक्शा एक बड़ा जिगसॉ पजल है। हर टुकड़ा एक निर्वाचन क्षेत्र (constituency) है, जो एक प्रतिनिधि चुनता है। जैसे-जैसे हमारी जनसंख्या बदलती है, इन टुकड़ों का आकार बदलने की जरूरत होती है। इसी काम के लिए Delimitation Commission बनाए जाते हैं।

इन आयोगों का काम है जनसंख्या में हुए बदलावों के आधार पर चुनावी क्षेत्रों की सीमाओं को फिर से खींचना। इससे यह सुनिश्चित होता है कि अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्रों को उचित प्रतिनिधित्व मिले, जिससे व्यवस्था निष्पक्ष बनी रहे।

भारत में परिसीमन आयोग का सफर

भारतीय संविधान कहता है कि हर जनगणना के बाद एक Delimitation Commission बनाना चाहिए। लेकिन अब तक, भारत में केवल चार बार परिसीमन आयोग बने हैं।

  • 1952: यह आजादी के बाद पहला परिसीमन था, जिसने निर्वाचन क्षेत्रों की शुरुआती व्यवस्था बनाई।
  • 1963: इस आयोग ने 1951 के बाद हुई जनसंख्या में बदलावों को ध्यान में रखा।
  • 1973: आपातकाल के कारण इस परिसीमन को रोक दिया गया था।
  • 2002: यह सबसे हालिया आयोग था, जो 2001 तक की जनसंख्या वृद्धि को दर्शाता था।

1981 और 2002 के बीच कोई परिसीमन नहीं हुआ क्योंकि सरकार परिवार नियोजन नीतियों को परिसीमन से अलग रखना चाहती थी।

अगला परिसीमन आयोग

परिसीमन प्रक्रिया नवीनतम जनगणना के आंकड़ों पर आधारित होती है। 2011 की जनगणना के बाद, हम उम्मीद कर सकते हैं कि 2021 की जनगणना पूरी होने के बाद अगला परिसीमन आयोग बनेगा।

अब तक हमारे पास चार Delimitation Commission हो चुके हैं। भारत का चुनावी नक्शा लगातार बदलती जनसंख्या को दिखाने के लिए अपडेट होता रहता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि हमारे लोकतंत्र में हर वोट की अहमियत बनी रहे।

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परिसीमन आयोग: कितनी बार बना और क्यों?

भारत में कितने परिसीमन आयोग बने हैं? How Many Delimitation Commission

भारत में लोकतंत्र की बुनियाद चुनावों पर टिकी है। निष्पक्ष और सही चुनावों के लिए यह जरूरी है कि समय-समय पर जनसंख्या के बदलाव को देखते हुए निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाएँ बदली जाएँ। यह काम Delimitation Commission करता है।

परिसीमन आयोग क्या है?

Delimitation Commission एक स्वतंत्र संस्था है जो भारत में चुनाव क्षेत्रों की सीमाओं को तय करती है। इसे संविधान के अनुच्छेद 82 के तहत भारत सरकार द्वारा बनाया जाता है।

परिसीमन आयोग कितनी बार बना है?

भारत में अब तक चार बार परिसीमन आयोग बनाया गया है:

  1. 1952: में पहला परिसीमन आयोग बनाया गया था। इसने 1951 की जनगणना के आधार पर चुनावी क्षेत्रों को तय किया।
  2. 1963: में दूसरा परिसीमन आयोग गठित किया गया था। इसने 1961 की जनगणना के आधार पर चुनावी क्षेत्रों का परिसीमन किया।
  3. 1973: में तीसरा परिसीमन आयोग गठित किया गया था। इसने 1971 की जनगणना के आधार पर चुनावी क्षेत्रों का परिसीमन किया।
  4. 2002: में चौथा और सबसे हालिया परिसीमन आयोग बनाया गया था। इसने 2001 की जनगणना के आधार पर चुनावी क्षेत्रों का परिसीमन किया।

परिसीमन आयोग कब बनाया जाता है?

भारत में कितने परिसीमन आयोग बने हैं? How Many Delimitation Commission

संविधान के अनुसार, हर बार जब भारत में जनगणना होती है, तब एक नया Delimitation Commission गठित किया जाना चाहिए। इसका अर्थ है कि हर जनगणना के बाद एक नया परिसीमन आयोग बनाया जाता है।

परिसीमन आयोग के मुख्य कार्य निम्नलिखित होते हैं:

⏺चुनावी क्षेत्रों के सीमाओं का निर्धारण करना, जो जनसंख्या, भौगोलिक विशेषताओं और प्रशासनिक सुविधाओं के आधार पर होता है।

⏺अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए चुनावी क्षेत्रों का आरक्षण करना।

⏺चुनावी क्षेत्रों के नाम तय करना।

⏺चुनावी क्षेत्रों के मानचित्र तैयार करना।

परिसीमन आयोग का महत्व:

Delimitation Commission भारतीय लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह सुनिश्चित करता है कि चुनाव निष्पक्ष और प्रतिनिधित्वपूर्ण तरीके से आयोजित होते हैं। परिसीमन आयोग द्वारा तय किए गए चुनावी क्षेत्रों का प्रभाव भविष्य में आने वाले कई वर्षों तक चुनाव परिणामों पर होता है।

परिसीमन आयोग की नियुक्ति: कौन करता है और क्यों?

भारत में लोकतंत्र के माध्यम से, निष्पक्ष और प्रतिनिधित्वपूर्ण चुनावों का आयोजन बहुत महत्वपूर्ण है। इसके लिए, जरूरी है कि निर्वाचन क्षेत्रों का सीमांकन समय-समय पर जनसंख्या के बदलावों के हिसाब से किया जाए। यह कार्य परिसीमन आयोग द्वारा किया जाता है।

परिसीमन आयोग क्या है?

परिसीमन आयोग एक स्वतंत्र संस्था है जो भारत में चुनावी क्षेत्रों की सीमाओं को तय करती है।

परिसीमन आयोग की नियुक्ति कौन करता है?

परिसीमन आयोग की नियुक्ति भारत सरकार द्वारा संविधान के अनुच्छेद 82 के तहत की जाती है।

नियुक्ति प्रक्रिया

मुख्य निर्वाचन आयुक्त भारत सरकार को परिसीमन आयोग के गठन की सिफारिश करते हैं। भारत सरकार, मुख्य निर्वाचन आयुक्त की सिफारिश पर, आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति करती है। अध्यक्ष के रूप में आमतौर पर सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश चुने जाते हैं, जबकि सदस्यों में राज्य के निर्वाचन आयुक्त और केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किए गए व्यक्ति होते हैं।

परिसीमन आयोग के कार्यकाल:

परिसीमन आयोग का कार्यकाल सीमित होता है। जब भी जनगणना के परिणाम प्रकाशित होते हैं, तब आयोग को उसके भीतर एक वर्ष के अंदर अपना काम पूरा करना होता है।

नियुक्ति की महत्वता

⏺ *स्वतंत्रता*: परिसीमन आयोग की नियुक्ति में सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता, इससे आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता सुनिश्चित होती है।

*अनुभव और विशेषज्ञता*: आयोग के सदस्यों में चुनाव प्रक्रिया और कानूनी मामलों में व्यापक अनुभव और विशेषज्ञता होती है।

*निष्पक्षता*: नियुक्ति प्रक्रिया पारदर्शी होती है और उसका मुख्य उद्देश्य एक निष्पक्ष और निष्पक्ष आयोग का गठन करना होता है।

निष्कर्ष:

परिसीमन आयोग की नियुक्ति भारत के लोकतंत्र में बहुत महत्वपूर्ण है। यह सुनिश्चित करता है कि चुनावी क्षेत्रों का परिसीमन एक निष्पक्ष और न्यायसंगत तरीके से होता है, ताकि सभी नागरिकों को समान प्रतिनिधित्व मिल सके।

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